भोजपुर मंदिर की प्रमुख विशेषताएं/ Key Features of Bhojpur Temple

भोजपुर का प्राचीन मंदिर
भोजपुर मंदिर, मध्य प्रदेश कि राजधानी भोपाल से तक़रीबन  26  किलो मीटर की दूर स्तिथ है, जो की रायसेन जिले के अंतगत आता है.  भोजपुर गांव से कुछ दुरी पर नदी (कालिया शोत आगे चलकर  बेतवा) के किनारे पहाड़ी पर एक विशाल, अर्धनिर्मित प्राचीन शिव मंदिर हैं। यही मंदिर भोजपुर शिव मंदिर या भोजेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। भोजपुर के इस प्राचीन शिव मंदिर का निर्माण परमार वंश के चक्रवर्ती सम्राट राजा भोज (1010 ई – 1055 ई ) के द्वारा किया गया था। इस प्राचीन मंदिर  कि अपनी अनेको विशेषताएं हैं।

पहली विशेषता: विशाल शिवलिंग/First Feature: Vast Shivling

प्राचीन विशाल शिवलिंग

इस प्राचीन मंदिर कि पहली विशेषता यहाँ निर्मित विशाल शिवलिंग हैं जो कि विश्व का सबसे बड़ा एक ही पत्थर से निर्मित शिवलिंग (World’s Tallest Shiv Linga) हैं।  इस सम्पूर्ण शिवलिंग कि ऊंचाई 5.5 मीटर (18 फीट ), व्यास 2.3 मीटर (7.5 फीट ), तथा केवल लिंग कि ऊंचाई 3.85 मीटर (12 फीट ) है। जो एक प्रकार के लाल पत्थर से निर्मित है।

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इस शिवलिंग को इतने खूबसूरती से तराशा गया है की हर कोई ऐसे देख कर आश्चर्य चकित रह जाता है, क्यों की आज से १००० साल रहले एक ही पत्थर पर एक विशाल शिवलिंग बनाना और ओ भी बिना किसी  कमी के सच में यह एक अद्भुत काम था और यही काम इसकी विशेषता दर्शाता है।

दूसरी विशेषता: मंदिर के पीछे की ढलान/Second Feature: The Slope Behind the Temple

मंदिर के पीछे की ओर की ढलान

इस मंदिर के पीछे की ओर आज भी एक ढलान स्थित है जो की दर्शाती है की मंदिर निर्णाम के दौरान विशाल पत्थरो को धोने के लिए इस का उपयोग किया गया होगा। यह एक प्रमाण उपलब्ध है की कैसे प्राचीन काल में मंदिर निर्माण के दौरान विशाल पत्थरो को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता था जिससे निर्माण कार्य में सुविधा हो सके। इस मंदिर के निर्माण में 70 टन से भी अधिक वजनी चट्टानों का उपयोग किया गया है।

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विश्व में कही भी इस प्रकार की ढलान नुमा सरचना नहीं देखि गई है जिस से प्रमाणित होता हो की प्राचीन काल में इस प्रकार की तकनीक का उपयोग किया जाता था भारी निर्माण के दौरान। यह भी अपने आप में एक विशेषता रखता है।

तीसरी विशेषता: अधूरा निर्माण कार्य/Third Feature: Incomplete Construction Work

अधूरा निर्माण कार्य

भोजपुर मंदिर कि तीसरी विशेषता यह है की इसका निर्माण कार्य अधूरा हैं। परन्तु आज तक कई इतिहाश्कार मिल कर भी इस रहस्य सुलझा नहीं पाये है. इस पास मंदिर निर्माण के प्रारूप को चट्टानो पर चित्रांकित किया हुआ है लेकिन इसके अधूरे निर्माण के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं मिलती है।

लोक कथाओ के आधार पर कहा  जाता है की इस मंदिर का निर्माण एक ही रात्री में पूर्ण होना था परन्तु मंदिर के ऊपरी छत का कार्य पूर्ण होने के पहले ही सुबह हो गई और निर्माण कार्य अधूरा रहा गया, जो की १००० साल से अधूरा का अधूरा है परतु अब मध्यप्रदेश सरकार इस अधूरे कार्य को पूर्ण करने का प्रयास किया जा रहा है जो की जल्दी ही पूर्ण हो जायेगा।

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चौथी विशेषता: गुम्बद नुमा छत/The Fourth Feature: The Dome Roof

गुम्बद नुमा छत

भोजपुर मंदिर कि अद्भुत गुम्बद नुमा छत हैं, चुकी इस  प्राचीन मंदिर का निर्माण भारत में इस्लाम के आगमन के पूर्व  हुआ था और इस मंदिर के गर्भगृह के ऊपर बनी अधूरी गुम्बद नुमा छत भारत में ही गुम्बद निर्माण के प्रचलन तथा उत्पत्ति को प्रमाणित करती है।

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चाहे इसके निर्माण की तकनीक थोड़ी अलग हो, कुछ इतिहारकारो और जानकारों की मने तो  इसे भारत में सबसे पहले गुम्बदीय छत वाली इमारत कहा जा सकता हैं।

पांचवी विशेषता: विशाल स्तम्भ/Fifth Feature: Huge Pillar

विशाल स्तम्भ

इस मंदिर का आधार का आकार अष्ट कोणीय है जिस पर चार विशाल 40 फिट ऊचे स्तम्भ है जिन पर मंदिर के गर्भगृह का भार  टिका हुआ है। ये ऊचे स्तम्भ अब तक के ज्ञात प्राचीन स्तम्भों से विशाल है जिन पर अनेक सूंदर कला कृतियाँ बानी हुई है. इस मंदिर का प्रवेश द्वार भी किसी हिंदू संस्कृति से जुडी इमारत के द्वारो में सबसे बड़ा माना जाता है।

छठवीं विशेषता: प्रवेश द्वार पर द्वारपाल/Sixth Feature: Gatekeeper at The Entrance

प्रवेश द्वार कुछ मुर्तिया

मंदिर के प्रवेश द्वार पर सामने की ओर दीवार पर कुछ मुर्तिया बानी हुई जो की अप्सराएं, द्वारपाल, गंगा और यमुना की हैं। यहाँ द्वार पर कई खाली स्थान भी है, हो सकता है प्रारंभिक समय में यहाँ पर और भी मुर्तिया रही होगी जो की समय मार को शायद नहीं झेल पाई या हो सकता है किसी अन्य वजह से अब नहीं है।

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सातवीं विशेषता: निर्माण कार्य की योजना/Seventh Feature: Construction Work Plan

Map of Bhojpur temple - Picture of Bhojpur, Raisen District - Tripadvisor
निर्माण कार्य की योजना credit: lemonicks

इस मंदिर की एक विशेषता यह है कि इसके निर्माण कार्य की अतिरिक्त जानकारी जैस – भूविन्यास, स्थंभ, शिखर, कलश चट्टानों की सतह पर चित्रांकित नहीं किये हुए है जबकी निर्माण कार्य के पूर्व सब कुछ पूर्ण रूप से उत्कीर्ण किया जाना चाहिए था, ऐसा प्रतीत होता है की निर्माण कार्य की योजना ही अधूरी रह गई थी  शायद इसी वजह से इस मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण नहीं पाया होगा (परन्तु इस बात पर बहोत सारे इतिहासकार सहमत नहीं है)। इस प्रकार का वर्णन मंदिर के निकट चट्टानों पर प्राप्त नक्शो से इसके निर्माण की योजना का पता चलता है।

आठवीं विशेषता: दीवारों पर बालकनी/Eighth Feature: Balcony on The Walls

दीवारों पर बालकनी की जैसी सरचना

मंदिर के दोनों ओर की दीवारों पर बालकनी जैसी सरचना का निर्माण किया गया है परन्तु यहाँ पर किसी प्रकार की कोई मूर्ति या नक्काशी नहीं बानी है। इसका निर्माण किस लिए किया गया था इसके पीछे का तर्क अभी तक अज्ञात है।

नवीं विशेषता: मंदिर प्रांगण/Ninth Feature: Temple Courtyard

प्रवेश द्वार के सामने में बड़ा सा प्रांगण बना हुआ है, हो सकता है प्राचीन समय में यहाँ पर भगवान शिव की आराधना एवं भजन कीर्तन करने के लिए इस मंदिर प्रांगण का उपयोग किया जाता होगा. इस प्रांगण में एक नंदी भी विराजमान है।

दसवीं विशेषता: Cave of Parvati (पार्वती कि गुफा)

भोजपुर मंदिर के इतिहास और घूमने की जानकारी - Bhojpur Temple Information In  Hindi
पार्वती कि गुफा

भोजपुर मंदिर के बिलकुल सामने की ओर पश्चमी दिशा में एक  प्राची गुफा हैं  यह गुफा को पार्वती गुफा के नाम से भी जाना जाता हैं। यह गुफा कलियासोत नदी के किनारे है जो की आगे चल के बेचवा नदी कहलाती है।  इस गुफा के अंदर पुरातात्विक महत्तव को दर्शाने वाली अनेक मूर्तिया विराजमान हैं।

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ग्यारवीं विशेषता: भोजपुर स्थित जैन मंदिर/Eleventh Feature: Jain Temple at Bhojpur

भोजपुर के शिव मंदिर के निकट एक जैन मंदिर भी स्थित है, आश्चर्य की बात तो यह है की यह जैन मंदिर का निर्माण भी अधूरा है. यहाँ भोजपुर मंदिर के जैसा ही पत्थर जुटाने का एक रास्ता दिखाई देता है  है। इस मंदिर के भीतर तीर्थांकरों की तीन मूर्तियाँ स्थापित हैं जो सभी जैन मंदिरों की विशेषता को दर्शाते है।

इन सब में सबसे महत्वपूर्ण महावीर भगवान की एक विशाल प्रतिमा है जो की लगभग 20 फीट से भी अधिक ऊंची है। शेष दोनों प्रतिमाएँ पार्श्वनाथ भगवान पार्शवनाथ व सुपारासनाथ की हैं। इस मंदिर का निर्माण आयताकार है। इन तीनो प्रतिमाओं में से एक के आधार पर एक शिलालेख है जिसमें राजा भोज के नाम का उल्लेख मिलता है। यह शिलालेख एक मात्र लिखित प्रमाण हैं जो कि राजा भोज से सम्बंधित हैं।

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इसी मंदिर के परिसर के अंदर आचार्य मानतुंग का मंदिर भी बना हुआ है जिन्होंने बहोत ही लोकप्रिय भक्तामर स्तोत्र लिखा था।

धार्मिक आयोजन/Religious Event

इस मंदिर के पुजारी श्री पवन गिरी गोस्वामी जी ने बताया कि उनकी यह १९ वीं पीढ़़ी है जो इस मंदिर की पीडियो दर पीढ़ी पूजा अर्चना करते आ रहे है। उन्होंने बताया शिवरात्रि पावन पर्व पर भगवान शिव का माता पार्वती से विवाह हुआ था। अत: इस दिन महिलाएं अपनी मनोकामना को पूर्ण करने के लिए व्रत रखती है व भगवान शिव  के दर्शन करने यहाँ पर आती है।

इस प्रसिद्ध स्थल पर वर्ष में दो बार वार्षिक मेलो का आयोजन किया जाता है जो मकर संक्रांति और महाशिवरात्रि  पवन पर्व के समय होता है। इस धार्मिक महोत्सव  में भाग लेने के लिए दूर दूर से शिवभक्त यहां पर दर्शन करने पहुंचते हैं। महाशिवरात्रि पर्व पर यहां तीन दिवसीय भोज महोत्सव जिसमे सांस्कृतिक और लोक गीत गायन का भी आयोजन किया जाता है।

फोटोज शेयर करने के लिए धन्यवाद

अनुराग डोंगरे
सुंदर बारंगे
राहुल किनकर
ललित गोहिते

 

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