पूरी दुनिया में प्रति वर्ष विश्व वन्यजीव दिवस 3 मार्च को मनाया जाता है, इसका उद्देश्य दुनिया भर के वन्यजीवों वनस्पतितयो की विलुप्त होती प्रजातियों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है।
बदलते वातावरण के कारन दिनों दिन अनेक जीवो और वनस्पतियो की प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर आ गई है.
अगर समय रहते अगर इनका सरक्षण नहीं कर पाए तो ये विलुप्त हो जाएगी। दुनिया भर की सरकार इस दिशा में काम करने का प्रयाश कर रह ही ताकि आने वाली पीढ़ी को विराशत के रूप में वन्यजीवों से भरपूर और सरक्षित पर्यावरण सौप सके।
इन दिनों बहोत ही तेजी से पर्यावरण बदल रहा है, जिसके फल स्वरुप यह एक गंभीर समाया बनती जा रही है और यह पूरी दुनिया के लिए चुनौती साबित हो रहा है।
2014 से सुरुवात: 3 मार्च 1973 को लुप्त होने के कगार पर वन्यजीव के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर प्रतिबन्ध के लिए सयुक्त राष्ट संघ में एक प्रस्ताव पर अनेक देशो ने हस्ताक्षर किये।
इस ऎतिहासिक दिन की याद में 20 दिसम्बर 2013 को संयुक्त राष्ट संघ की महासभा के 63 वें दिवस पर यह निर्णय लिया गया की हर साल 3 मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस के रूप में मनाया जायेगा।
3 मार्च, साल 2014 में प्रथम विश्व वन्यजीव दिवस सम्पूर्ण जगत में मनाया गया था।
तब से प्रति वर्ष इस दिवस को मनाया जाता है तथा यह अलग अलग विषय पर आधारित रहता है।
साल 2021 के लिए विश्व वन्यजीव दिवस में वन्यजीवों के साथ आजीविका के विषय पर आधारित है। न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय कोविड -19 के कारण इस बार एक वर्चुअल कॉन्फ्रेन्स के कार्यक्रम की मेजबानी करेगा।
दुनिया में वन्यजीवों के संरक्षण में सामने क्या-क्या चुनौतियां हैं-
1. 50 वर्ष में दो तिहाई वन्यजीव घट गए/Two-thirds of wildlife decreased in 50 years
विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) लिविंग प्लेनेट रिपोर्ट-2020 के अनुसार साल 1970 से 2016 के बीच वन्यजीव की संख्या में लगभग 68% की कमी आई। यानी 1970 की तुलना में आज धरती पर जीवो की संख्या में दो तिहाई कम हैं।
2. 1 मिलियन प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं/1 million species are on the verge of extinction
पुरे विश्व में जीवो और वनस्पति पौधों की लगभग 1 मिलियन से अधिक ज्ञात प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं।
एक संगठन, आईपीबीईएस के अनुसार, मनुष्यों के जीवन इतिहास में ऐसी स्थिति कभी नहीं हुई है। धीरे धीरे यह समस्या विकराल रूप लेते जा रही है, जो पूरी दुनिया के लिए चुनौती बना हुआ है।
3. उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में सबसे बड़ी गिरावट/ Biggest decline in tropical regions
WWF ने रिपोर्ट के माध्यम से कहा है कि साल 1970 के बाद के 50 वर्षों के भीतर, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में अमेरिका में पशुओं की संख्या में भारी गिरावट लगभग 94% के आसपास आई है। यह कमी दुनिया के सभी भूभागों में से सबसे कम है।
4. तेजी से विलुप्त होती प्रजातिया/ Fast extinct species
अमेरिका में स्थित ब्राउन यूनिवर्सिटी द्वारा किये गए एक अध्ययन में कहा गया है कि आज से लगभग 6 करोड़ साल पहले मनुष्य नहीं थे तब के मुकाबले इस समय वन्यजीवों की प्रजातियों दिनों दिन 1,000 गुना तेजी से लगातार घट रही है।
रिपोर्ट के अनुसार इस तेजी से घटती जीवो की संख्या बहोत ही चिंता जनक है विलुप्त होने के कगार पर स्थित जीव बचाने के लिए तत्काल उचित की कदम आवश्यकता है सभी देशो को इसे गंभीरता से लेना चाहिए।
5. मीठे पानी में रहने वाले जीवो की प्रजातियों में सबसे तेज गिरावट/ Fastest decline in species of freshwater living organisms
एक ताजा रिपोर्ट में ही दावा किया गया है कि मीठे पानी में रहने वाले जलीय जीवो की प्रजातियों में सब से ज्यादा कमी आई है जो की बहोत चिंता की बात है।
साल 1970 से 2018 के बीच जलीय जीवो की प्रजतियो में औसतन 84% की गिरावट आई है।
6. वन भूमि का अधिकांश भाग खेती में चला गया/ Most of the forest land went into farming
आईपीबीईएस के अनुसार, साल 1980 से 2000 के बीच दक्षिण पूर्व एशिया और लैटिन अमेरिका में लगभग 100 मिलियन हेक्टेयर से अधिक जंगल नष्ट कर के उन्हें कृषि योग्य बना दिया गया है जिस वजह से लाखो जीव विलुप्त हो गए और दिनों दिन ये सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है।
7. पक्षियों की प्रजातियों के लिए खतरा बढ़ा/ Threat to species of birds increased
आईपीबीईएस की रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2016 के बाद से घरेलू पक्षियों की संख्या में तक़रीबन 3.5% से अधिक की कमी आई है।
विलुप्त हुए पक्षियों में 23% से अधिक में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव देखा गया है।