छिंदवाड़ा और बैतूल जिले की सीमा पर बना नागदेव मंदिर सदियों से श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतिक रहा है। वास्तव में यह प्रसिद्ध नागदेव मंदिर, छिंदवाड़ा जिले के विकासखंड जुन्नारदेव की ग्राम पंचायत ढाकरवाड़ी के ग्राम निमोटी में स्थित है। परतु “नागदेव मंदिर मोरखा, जिला बैतूल” अथवा “धनगौरी बाबा मंदिर मोरखा, जिला बैतूल” के नाम से यह स्थान ज्यादा प्रसिद्ध है।
आस्था का प्रतीक/Symbol of faith
इसके आसपास क्षेत्र के गाँवो में इस नागदेव मंदिर की इतनी अधिक आस्था है कि किसी भी समाज/वर्ग के लोगों के यहां वैवाहिक कार्य होता है, तो विवाह के बाद नवयुगल दंपत्ति यहां नागदेव मंदिर में पूजा अर्चना कर नागदेवता का आशीर्वाद लेते हैं। और अपने नवीन वैवाहिक जीवन की शुरुआत करते हैं।
यह सिलसिला अक्षय तृतीया से लेकर गुरु पूर्णिमा तक रहता है।
यहाँ पर छोटे बच्चो का मुंडन भी किया जाता है इस दौरान बलि के रूप में बकरा या मुर्गा नागदेवता को अर्पित किये जाये है
नागदेव मंदिर से दूर-दूर के गाँवो में किसी के द्वारा किसी भी प्रकार का वहां चाहे वो दोपहिया या चौपहिया नए वाहन खरीदा जाता है, तो उसे भी यहां लाकर पूजन अवश्य कराया जाता है, एवं नाग देवता को प्रसाद चढ़ाया जाता है।
धार्मिक मान्यता/Religious Affiliation
ऐसा कहा जाता है की यहाँ स्थित बेल नदी में नाग देवता निवास हुआ करता था, जिसकी पुछ करीबन 200 मीटर लम्बी थी जो की बेल नदी के डोमन शेष नामक स्थान में डूबी रहती थी और नागदेवता का फन मंदिर की जगह पर रहता था। कई लोगो का मानना है की उन्होंने साक्षात नागदेवता के दर्शन किये है।
कुछ समय बाद जब यहां नागदेव कई दिनों तक नजर नहीं आए, स्थानीय लोगो ने मिलकर यहाँ नागदेवता की मूर्ति स्थापित की समय के साथ यहाँ भव्य मंदिर का भी निर्माण हो गया.
नागपंचमी के समय जो भी श्रद्धालु नागद्वारी की यात्रा पर जाते है ओ लोग इस मंदिर को पहली सीडी मानकर पूजते है और आगे की यात्रा पर निकलते है कुछ भक्त तो यहाँ से पैदल ही नागद्वारी और चौरागढ़ तक जाते है.
यहाँ पोला त्योहार के बाद ऋषि पंचमी के अवसर पर आस-पास के कई गांव के लोग मिलकर यहां पर एक अखाड़ा प्रतियोगिता कराते हैं। जबकि नागपंचमी के समय यहाँ पर हजारों भक्त भगवन के दरसन करने आते है.
यह मंदिर बेल नदी के किनारे स्थित है यह मंदिर मुख्य मार्ग से जुड़ा हुआ है इसलिए यहाँ बहोत ही आसानी से पंहुचा जा सकता है
नागदेवता बहोत सी जातियों में कुलदेवता मने जाते है और जिनके भी ये कुलदेवता होते है ओ वर्ष एक बार यहाँ आ कर जरूर पूजा अर्चना करते है.
लोगो में इस मंदिर के प्रति बहोत आस्था है, नागपंचमी के दौरान यहाँ पर विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता जो की कई दिनों तक चलता है.
मंदिर का इतिहास/History of temple
मंडई गांव निवासी रवि यदुवंशी के अनुसार यहाँ नागदेवता सैकड़ो वर्षो से स्थापित है (वैसे इसकी स्थापना किसने की इसका कोई प्रमाण नहीं है) और इसके बारे में अपने दादा परदादा से अनेक कहानिया सुनते आये है.
पहले यहाँ स्थापित मूर्ति छोटी थी जो की समय के अनुसार जा रही है इसका कारन यहाँ है की जो भी यहाँ आता है ओ मूर्ति के ऊपर सिंदूर चढ़ाते है जो की इस मूर्ति पर हमेशा के लिए चिपक जाता है.
यहाँ पर जो भी श्रद्धालु यहाँ आते है ओ पहले बेल नदी में स्नान करते है उसके बाद ही मंदिर में पूजा करते है.
ऐसा कहा जाता है की जो भी यहाँ आता है उसकी सभी मनोकामना पूरी हो जाती है.
वैसे तो यहाँ साल भार भक्तो का आना जाना लगा रहता है लेकिन सावन के महीनो यहाँ पूजा करने का विशेष महत्व है.
यदि आप इस मंदिर से 100-150 किलोमीटर की दुरी पर रहते हो तो बरसात के दिनों में दोस्तों के साथ यहाँ जा सकते है सूंदर प्राकृतिक नज़ारे के साथ भगवान के दर्शन हो जायेंगे और ये सफर यादगार हो जायेगा।
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