देवगढ़ किला छिन्दवाड़ा जिले से लगभग 42 किलोमीटर की दूरी पर विकास खंड मोहखेड़ के अंतर्गत देवगढ़ ग्राम में 650 मीटर ऊंची एक पहाड़ी पर इस किले का निर्माण किया गया है जिसे देवगढ़ किले के नाम से जानते है। यह छिंदवाड़ा जिले का एक मात्र ऐतिहासिक और गवरान्वित करने वाले किला है, यह किला घने जंगलों के बीच है साथ ही चारों ओर गहरी खाई से घिरा हुआ है।
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इस किले का निर्माण 15-16वीं सदी में गोंड राजाओं द्वारा किया गया था। देवगढ किला मध्य भारत में गोंडवाना साम्राज्य के वैभव और समृध्दि से जुडा हुआ इसका इतिहास आज भी अपनी गौरवशाली विरासत को दर्शाता है। देवगढ़ किले के बारे में कोई अधिक लिखित प्रमाण प्राप्त नहीं है।
लेकिन बादशाहनामा व मुगलो के साहित्य में देवगढ़ वर्णन मिलता है। अकबर के समय देवगढ़ पर जाटवा राजाओ का राज्य हुआ करता था।
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पहाड़ी पर विशाल किला निर्माण की अभूतपूर्व शैली और प्राकृतिक के बिच होने से इस किले की सुंदरता और भी बाद जाती है. ऐसे देखने मात्र से पता चलता है की यह अपने समय में कितना वैभव पूर्ण रहा होगा।
किले के आसपास अनेक जल संरक्षण की प्राचीन प्रणाली आज भी जिवंत है कहा जाता है की किले के चारोओर सैकड़ो बावड़ी और कुएँ है, जिनमे से कुछ अभी ज्ञात है और बाकि की खोज अभी भी जारी है.
इस किले के बारे में ऐसा माना जाता है कि देवगढ़ को नागपुर से जोड़ने के लिए एक गुप्त भूमिगत मार्ग हुआ करता था, जिसका उपयोग आपातकाल स्थिति राजाओं द्वारा बचने के लिए किया जाता था।
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किले का निर्माण सुरक्षा की दृष्टि से अभेद और बहुत ही मजबूती से बनाया गया था। इस किलें में आक्रमण कर जितना असंभव था। उत्तर दिशा से किलें में किले का विशाल प्रवेश द्वार है जहा से इसके भीतर प्रवेश किया जा सकता हैं।
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देवगढ़ किला गोंड वंस के राजाओ की राजधानी के लिए प्रशिद्ध है. देवगढ़ का साम्राज्य लगभग पुरे मध्य भारत में फैला हुआ था देवगढ़ पर राज्य करने वाले प्रमुख राजाओ में प्रतापी राजा जाटाव शाह, राजा धुरवा, राजा कोकशाह और इनके आलावा वहां इस्लामिक आगमन का भी प्रभाव देखा जाया है जो दर्शाते है की इन गोंड राजाओ के बाद देवगढ़ पर इस्लामिक बादशाहो ने भी यहाँ पर राज किया है.
यहाँ राज्य करने वाले राजाओ में प्रमुख जाटव शाह सबसे अधिक प्रभावशाली रहे उनका अनेक इतिहास में अनेक जगह वर्णन मिलता है जिस से साफ पता चलता है की उनका साम्राज्य दूर दूर तक फैला था और वह एक प्रभावी राजा था.
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खेरला सरकार में दिया गया है की एक जाटव शाह नामक राजा है जिसके पास 100 हाथी, 2000 घुड़सवार और 50000 पैदल पलटन है वह देवगढ़ का राजा है उनकी प्रजा गोंड है उनके पास बहोत से जंगली हाथी रहते है और यह मालवा के अधीन आता है.
“मेमोरीज ऑफ़ जहांगीर” में जाटव शाह के संबंध में यह लिखा है कि “सम्राट जहांगीर अपने शासन काल के 11वें वर्ष सन् 1616 ईस्वी में अजमेर से मालवा आया था। मालवा की सीमा पार करते समय जाटवा शाह ने सम्राट जहांगीर को दो हाथी भेंट स्वरूप दिए।”
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इससे साफ़ स्पष्ट होता है कि जाटवा शाह एक प्रभावशाली राजा था। इसकी स्वयं की टकसाल (जहा धातु के सिक्के छापे जाते है ) थी। जिसमें महाराजा जाटवा शाह के नाम से तांबे के सिक्के बनाये जाते थे। राजा जाटवा शाह ने 50 वर्षों तक अर्थात सन् 1620 ईस्वी तक राज्य किया।
किले में प्रमुख रूप से देखने के लिए मोती टाका, प्राचीन चंडी मंदिर, कचहरी और नक्कारखाना है। इस जगह की खूबसूरती आप इस किलें में जाकर आप देख सकते हैं।
मोती टाका/Moti Taka:
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देवगढ़ किले के आसपास अनेक ऐसी सरचनाये है जो जल को संग्रह करती है यहाँ अनेक बावडी और कुए है किले के शीर्ष पर एक मोती टाका नाम का एक कुण्ड/तालाब है. कहा जाता है की इसमें बहोत साफ पानी रहता था इसलिए इसका नाम मोती टाका रखा गया।
प्राचीन चंडी मंदिर/Ancient Chandi Temple:
देवगढ़ के किलें में एक प्राचीन मंदिर स्थित है। जिसे स्थानीय लोग चंडी मंदिर कहते हैं। यहाँ पर दशहरे के समय विशे पूजना का आयोजन किया जा है. कहा जाता है की चंडी देवी जाटव की कुल देवी है भी उनके वंशज यहाँ साल में एक बार जरूर पूजा आराधना करने आते है.
कचहरी/Kacheree:
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कचहरी में राजा का दरबार लगा करता था। यहां बने मंच पर राजा और दरबारी बैठा करते तथा जनता मंच के सामने खड़ी होकर राजे के सामने अपनी समस्याओ का बयां करते थे और राजा उनका निवारण। इस मंच की छत लकड़ी के सुंदर स्तंभों पर आधारित रही होगी जो की अब समय के साथ अश्तित्व में नहीं है।
नक्कारखाना/Nakkaarakhaana:
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नक्कारखाना (बुर्ज) की छत पर सिपाई तैनात रहा करते थे, जो किले के अंदर और चारों ओर की चौकसी किया करतें थे। नक्कारखाना (बुर्ज) से राजा के आगमन की सूचना आम लोग तक नगाड़ा बजा कर पहुचायी जाती थी। नक्कारखाना (बुर्ज) की बाहरी दीवारों को सुंदर तरीके से अलंकृत किया गया है, जो इसकी शोभा को बढाता था। जिसके अवशेष आज भी विद्यमान और देखे जा सकते है। यह पर शत्रु पर निगरानी रखने के लिए कुछ किलोमीटर की दूरी पर अलग अलग चैकियां बनाई जाती थी। राजा के आगमन पर मधुर ध्वनि बजाकर अभिनंदन किया करते थे।
मस्जिद/Mosque:
देवगढ़ के किलें में एक मस्जिद भी देखने मिल जाती है। राजा जाटव शाह की मृत्यु के पश्चात उनके प्रापोत्र महराज कोकवा द्वितीय के पुत्रों में देवगढ़ के शासक बनने के लिए झगड़ा शुरू हो गया था। जिसके फलस्वरूप उनके पुत्र राज्य पाने के लिए दिल्ली जाकर मुगल सम्राट औरंगजेब की सहायता लेकर देवगढ़ का राज्य प्राप्त किया।
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इस सहायता के बदले उसने इस्लाम धर्म अपना लिया और बख्त बुलंद शाह की उपाधि धारण की। इसी अवसर पर यहां पर मस्जिद का निर्माण किया गया था।
इतिहास में अपनी जगह बनाने वाला देवगढ आज खुद इतिहास बना हुआ. देवगढ़ मुख्य मार्ग से जुड़ा हुआ है इसलिए यहाँ जाना बहोत ही आसान है, यहाँ पर किसी भी मौसम में जाया जा सकता है लेकिन जुलाई से दिसम्बर के बिच जाते है तो यहाँ का प्राकृतिक सूंदर नजारा जरूर अपने और आकर्षित करेगा। है,
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यहाँ पर दोस्तों और फैमिली के साथ एक दिन की पिकनिक पर जा सकते है, सुविधा के लिए हो सके तो खाने पिने की चीजे साथ ले जाये क्यों की वहा किसी प्रकार की कोई दुकाने नहीं है। देवगढ़ की महानता और यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता सचमुच अद्भुत है यहाँ से पहाड़ो का मनोरम नजारा देख सकते है जो मन को सुकून दे जायेगा।
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कैलाश उइके
नंदकिशोर बारंगे
अरुण घागरे पवार
पियूष पठाड़े
सजल पवार महाजन
2 thoughts on “देवगढ़ किला मोहखेड़, छिन्दवाड़ा/Deogarh Fort Mohkhed, Chhindwara”