राजा भोज का राज्याभिषेक अल्पायु में हुआ उस समय राजा चारों दिशाओ से शत्रुओं से घिरे थे। उत्तर दिशा में तुर्को द्वारा, उत्तर-पश्चिम दिशा में राजपूत द्वारा, दक्षिण दिशा में विक्रम चालुक्य द्वारा, पूर्व दिशा में युवराज कलचुरी द्वारा तथा पश्चिम दिशा में भीम चालुक्य से उन्हें युद्ध लड़ना पड़ा।
उन्होंने अपनी अल्पायु में विवेक और पराक्रम के माध्यम से सभी को हराया। दक्षिण में तेलंगाना के तेलप और तिरहुत के गांगेयदेव नामक शासक को हराने से एक मशहूर कहावत बनी- ”कहां राजा भोज, कहां गंगू तेली”
उनकी आत्मकथा ‘भोज प्रबंधनम्’ के नाम से विख्यात है। राजा भोज ने अपने शासन काल में हनुमानजी द्वारा रचित रामकथा के शिलालेख को समुद्र से निकलवाकर धार नगरी में उनकी पुनर्रचना करवाई, जो की हनुमान्नाष्टक के रूप में प्रसिद्ध है।
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इसके अलावा उन्होंने चम्पू रामायण की रचना की, जो अपने गद्यकाव्य के लिए जाना जाता है। आईन-ए-अकबरी में प्राप्त उल्लेखों के अनुसार राजा भोज की राजसभा में 500 से अधिक विद्वान होने का प्रमाण मिलता है।
राजा भोज का जीवन परिचय/ Biography of Raja Bhoj
राजा भोज का जन्म बसंत पंचमी को साल 980 में महाराजा विक्रमादित्य की नगरी उज्जैन में हुआ। परम प्रतापी राजा भोज सम्राट विक्रमादित्य के वंसज थे।
एक संस्कृत के प्रशिद्ध विद्वान डॉ. रेवा प्रसाद द्विवेदी ने प्राचीन साहित्य पर शोध के समय मलयाली भाषा में राजा भोज के बारे में तथा उनकी रचनाओ की प्रमाण प्राप्त किये, जिससे स्पष्ट होता है की राजा भोज का साम्राज्य मालवा से लेकर केरल के समुद्र तट तक था।
परमार वंशीय राजाओं ने मालवा क्षेत्र के एक नगर धार को अपनी राजधानी बनाकर 8 वीं शताब्दी से लेकर 14 वीं शताब्दी तक राज्य किया था। इसी वंश में हुए परमार वंश के सबसे महान अधिपति महाराजा भोज ने धार में 1000 ईसवीं से 1055 ईसवीं तक शासन किया।
1010 से 1055 ईस्वी तक के कई ताम्रपत्र, शिलालेख और शिलालेख राजा भोज से संबंधित पाए जाते हैं। भोज के राज्य में मालवा, कोंकण, खानदेश, भिलसा, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़ और गोदावरी घाटी के कुछ हिस्से शामिल थे।
उन्होंने धार को उज्जैन के बजाय अपनी नई राजधानी बनाया। राजा भोज को उनके कार्यों के कारण ‘नवसाहसक’ यानी ‘नव विक्रमादित्य’ भी कहा जाता था। महाराजा भोज इतिहास के प्रसिद्ध मुंजराज के भतीजे और सिंधुराज के पुत्र थे। उनकी पत्नी का नाम लीलावती था।
महाराजा विक्रमादित्य के है वंशज/ The Descendants of Maharaja Vikramaditya
परमार वंशी सम्राट विक्रमादित्य के ही वंशज थे राजा भोज। आज के समय में हम जिस हिन्दू कैलेंडर का उपयोग करते है उसका श्रेय महाराज विक्रमादित्य को जाता है |
जिन्होंने हिन्दू कैलेंडर की स्थापना कर इसे प्रचलन में लाया, आज जो हिन्दू कैलेंडर चल रहा है उसे विक्रम संवत कहते है। इन्ही के वंसज रहे राजा भोज की कीर्ति आज भी अनेक दिशाओ में फली हुई है।
जिनके नाम पर ही भोपाल शहर बसा है। भारतीय इतिहास में राजा भोज को हिन्दू धर्म रक्षक के रूप में दर्शाया गया है, उन्होंने बहोत ही काम समय में ऐसे अनेक कार्य किये जो की अद्भुत और असंभव से लगते है।
राजा भोज ने अनेक मंदिरो का जिर्णोद्वार कराया साथ ही बहोत से नए मंदिरो का निर्माण किया। इस्लामिक आक्रमणकारियों से बुझती हिन्दू धर्म की कीर्ति को पुनः जीवित कर दसो दिशाओ में फैलाया।
इतिहास के अनुसार 1000 साल में इस प्रकार का कोई पराक्रमी नहीं हुआ। परमार वंश, चौहान वंश, परिहार वंश और चालुक्य वंश ये सभी एक दूसरे से जुड़े हुए है। जिनका अपना अपना इतिहास में योगदान है।
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भारतीय राजाओ में यह चलन नहीं रहा है की वो अपना इतिहास नहीं लिखवाते है जैसे मुग़ल और अंग्रेज आदि राजा लिखवाया करते थे। इसलिए इन राजाओ का शौर्य सिर्फ लोककथाओं से ही आज तक जिन्दा है।
प्रजा व हिन्दू धर्म के प्रति असीम स्नेह/ Infinite Affection Towards Subjects and Hindu Religion
प्रजा और धर्म के प्रति, राजा भोज का बहोत अधिक झुकाव रहा है, अपने शासन काल के दौरान एक खुशाल राज्य का निर्वहन किया। उनकी अद्भुत नाय प्रणाली की आज भी तारीफ की जाती है।
हिन्दू धर्म के सरक्षक होने के साथ साथ राजा भोज एक महान शिव भक्त भी थे, उन्होंने अपने शासन काल में अनेक मंदिरो का नवनिर्माण और जीर्णोद्वार कराया। जिनमे प्रमुख महाकालेश्वर, केदारनाथ, रामेश्वरम, सोमनाथ और भोजपुर का शिव मंदिर शामिल है।
महमूद गजनवी से लिया बदला/ Avenged from Mahmud Ghaznavi
कुछ इतिहासकारो के अनुसार गुजरात में जब महमूद गजनवी (971-1030) ने सोमनाथ मंदिर को लुटा। यह दुःखद समाचार राजा भोज तक पहुंचने में कई हफ्ते लग गए, राजा को यह खबर सुन बहोत आघात हुआ।
फिर उन्होंने गजनवी से बदला लेने के लिए उस पर आक्रमण किया। तुर्की के लेखक गार्डिज़ी के अनुसार, राजा भोज ने तब सोमनाथ का बदला लेने के लिए हिंदू राजाओं की एक संयुक्त सेना संघटन किया था।
उन्होंने 1026 में गज़नावी पर हमला किया और उसे सिंध नदी के रेगिस्तान के पर तक भगाया। उसके बाद ही भोपाल से 32 किमी दूर स्थित भोजपुर शिव मंदिर का निर्माण किया जिसे आज भी पुरोवत्तर का सोमनाथ मंदिर कहा जाता है।
जिसकी अवधि 1026-1054 के बीच थी। जाने-माने पुरातत्वविद् अनंत वामन वाकणकर ने अपनी पुस्तक में मालवा के परमार राजाओ की महिमा का वर्णन मिलता है। भोजराज की तुर्शको (तुर्को) पर विजय की पुष्टि मिलती है।
यही कारण था जिसके बाद मध्यभारत में, मालवा और खासकर धार और भोपाल पर अधिक मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा लगातार हमले हुए।
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राजा भोज के निर्माण कार्य/ Construction Work of Raja Bhoj
आज के समय में जो मध्यप्रदेश के प्राचीन सांस्कृतिक गौरव के स्मारक है, उन सभी में अधिकतर राजा भोज के शासन काल में निर्माण किये गए है। जैसे-
- भोजपुर का प्राचीन शिव मंदिर, जहा विराजमान शिव लिंग को विश्व में सबसे बड़े और प्राचीन एक पत्थर से निर्मित होने का गौरव प्राप्त है।
- पृथ्वी के केंद्र में स्थित श्री महाकालेश्वर मंदिर जो की बारह ज्योतिर्लिंग में सब से प्रमुख है।
- धार जिले में स्थित भोजशाला, राजा भोज द्वारा निर्मित संस्कृत अध्ययन का केन्द्र तथा सरस्वती माता का मन्दिर था।
- भोपाल के बड़े तालाब निर्माण राजा भोज द्वारा ही करवाया गया है जो की एशिया की सब से बड़ी मानव निर्मित झील है।
- भोपाल नगर की स्थापना भी राजा भोज द्वारा ही की गई थी उन्होंने ने उज्जैन, धार और विदिशा जैसे शहरो को अपने अनुसार नया रूप दिया।
- रामेश्वर, भोजपुर, केदारनाथ, सोमनाथ, मुण्डीर जैसे अनेक मंदिर का नवनिर्माण और जीर्णोद्वार किया, जो आज हमारी सनातन धर्म एयर संस्कृति की पहचान है।
- राजा भोज ने भोजपुर में शिव मंदिर निर्माण के दौरान एक विशाल सरोवर का निर्माण कराया था, जिसका क्षेत्रफल लगभग 250 वर्ग मील से भी अधिक था।इस सरोवर 15 वी शताब्दी तक विद्यमान होने के प्रमाण है, कुछ स्थानीय शासको द्वारा इसके तट को क्षति पहुंचने के कारन इसका अस्तित्व ख़तम हो गया।
विद्वान राजा भोज द्वारा की गई ग्रंथ रचना/ Book Written by Scholar Raja Bhoj
परमार वंश राजा भोज खुद एक विद्वान होने के साथ-साथ काव्यशास्त्र और व्याकरण के बड़े ज्ञाता थे और उन्होंने बहुत से ग्रंथो की सरचना की। जन मान्यता अनुसार राजा भोज को 64 प्रकार की सिद्धियां प्राप्त की थीं, तथा उन्होंने अनेक विषयों पर लगभग 84 ग्रंथ लिखे जिसमें धर्म, आयुर्वेद, ज्योतिष, व्याकरण, कला, वास्तुशिल्प, विज्ञान, संगीत, नाट्यशास्त्र, योगशास्त्र, दर्शनशास्त्र, राजनीतिशास्त्र आदि प्रमुख हैं।
उन्होंने ‘समरांगण सूत्रधार’, ‘युक्ति कल्पतरु’, ‘सरस्वती कंठाभरण’, ‘भोजचम्पू’, ‘सिद्वांत संग्रह’, ‘राजकार्तड’, ‘योग्यसूत्रवृत्ति’, ‘विद्या विनोद’, ‘चारु चर्चा’, ‘आयुर्वेद सर्वस्व श्रृंगार प्रकाश’, ‘प्राकृत व्याकरण’, ‘शब्दानुशासन’, ‘कूर्मशतक’, ‘आदित्य प्रताप सिद्धांत’, ‘श्रृंगार मंजरी’, ‘कृत्यकल्पतरु’, ‘तत्वप्रकाश’, ‘राज्मृडाड’ आदि ग्रंथों की रचना की थी।
राजा भोज की मृत्यु/ Death of King Raja Bhoj
राजा भोज ने अपने शासन काल में अनेक कार्य किये। राजा भोज को हिन्दू धर्म के सरक्षक में रूप में इतिहास में स्थान प्राप्त है। राजा ने सम्पूर्ण भारत वर्ष में हजारो नए मंदिर के साथ पुराने मंदिरो का जीर्णोद्वार भी करवाया।
इतने महानतम कार्य करने के बाद भी अपने शासन काल के अंतिम वर्षो में राजा भोज को पराजय का सामना करना पड़ा। गुजरात के राजा चालुक्य तथा चेदि नरेश ने अपनी सयुक्त सेना के साथ लगभग 1060 में धार पर आक्रमण कर राजा भोज को पराजित किया। इसके बाद ही राजा की मृत्यु हुई, और इस एक चमकते सूर्य का अस्त हुआ।
Photo credit: 1. Anurag Dongre
परमार और पंवार गोत्र गुर्जर जाति में पाए जाते हैं उत्तर प्रदेश सहारनपुर में पंवार गोत्र के 44 गुर्जर गांव है और कुछ राजस्थान मध्य प्रदेश में है और कुछ हरियाणा में है परमार और पंवार गोत्र गुर्जर जाति में ही पाया जाता है ।
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