भारतीय संस्कृति में प्रकृति का विशेष ध्यान रखा गया है सनातन धर्म में प्रकृति की माँ की उपाधि दी गई है इसलिए वह पूज्यनिय है। हिन्दू धर्म में अनेक पर्व मनाये जाते है जिनमे प्रकृति के अनेक जीव और वनस्पति की पूजा की जाती है।
हिन्दू धर्म सभी जीवो के प्रति आदर भाव रखता है, सनातन धर्म कहता है की सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुख भागभवेत। ऊँ शांतिः शांतिः शांतिः।
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अर्थात “पृथ्वी पर निवास करने वाले सभी सुखी रहे, सभी निरोगी रहें, सभी जीव जंतु का मंगल हो और कोई भी प्राणी दुःख के भागी न बने।
इंसान की मानशिकता/Human mind
आज के समय में मनुष्य साइंस के गुणगान में मस्त है। वह जानता है की यह सब एक भ्रम मात्र है परन्तु वह उसी में विश्वास करता है और अपने आप से झूट बोलता है।
दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है, वह सिर्फ वास्तविकता से अनजान बने रहने के कारण हो रहा है।आज के समय में मनुष्य की मानसिकता विज्ञान की जंजीरो से बंधी हुई है।
साइंस ने ही आज एक से एक खतनाक बीमारी को जन्म दीया, इनमे से एक कैंसर भी है, क्यों की इतिहास में इस प्रकार के रोग का कही वर्णन नहीं मिलता।
अपनी जीवन शैली की वजह से आज मनुष्य पृथ्वी पर ही नर्क के दुःख भोग रहा है बढ़ती आधुनिकता मानव शरीर को कमजोर बना रही है।
विज्ञान कहता है की पहले के मुकाबले इंसानो का दिमाक तेज चल रहा है लेकिन शरीर ही नहीं रहेगा तो मष्तिस्क का क्या करेंगे।
तब और अब/Then and Now
जब पेड़ को पूजा जाता था, तब ताज़ी हवा मिलती थी। लेकिन आज सब जानते है, की मानवता किस तरह के माहौल में जी रही है, और इन सब की वजह है आधुनिकता तथा अपनी संस्कृति और धर्म को अनदेखा करना।
जब इंसान स्वयं जानवर पालता और पूजा करता तब उसे शुद्ध दूध मिलता था, और आज हम ले रहे पॉलीथिन में।
क्या कभी सोचा है क्यों हमारे पूर्वज प्रकृति को देव तुल्य और अनेक महत्व पूर्ण प्राणी (जानवर) की पूजा करते है, मेरे ख्याल से इसलिए क्योंकी वे इनका महत्व समझते थे।
लेकिन आज की दुनिया में लोग ऐसी बातो का मजाक उड़ाते है जो की बिलकुल भी अच्छा नहीं है।विकसित और विकाशील होना अच्छी बात है लेकिन मानवता को नहीं भूलना चाहिए।
मनुष्य श्रस्टि के समस्त प्राणी में श्रेष्ठ है लेकिन उसके द्वारा किये गए कार्य दमनकरी और विनाशकरी जो स्वय के आलावा संसार की समस्त प्राणी के लिए घातक है।
भौतिक सुख सुविधा/ Material comfort
आज भौतिक सुख सुविधाओं की तलाश में इंसान मानसिक-शारीरक सुख खोता जा रहा है और दिखावे की जिंदगी जी रहा है सब कुछ जानकर अनजान बनना तो कोई इंसान से सीखे.
आधुनिकता चारो ओर है लेकिन अपने कोसो दूर है, तकनीक उपलब्धदी तो इतनी है की एक सेकंड में एक दूसरे से कनेक्ट कर दे लेकिन उसके लिए एक सेकंड का भी वक्त नहीं है।
वह दूर अपनों से नहीं अपने आप से होता जा रहा है। मनुष्य विज्ञान की ओर बड़ रहा है लेकिन वास्तविकता का ज्ञान छूटता जा रहा है।
खोज करते हुए तो मंगल तक पहुंच गए लेकिन यहाँ के समस्त प्राणियों की कुंडली में शनि छोड़ गए।
मनुष्य यदि मानवता भूलता है तो उसका विनाश निश्चित होना है और ओ भी समय से पूर्व।
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कुछ साल पहले तक मुझे भी इन बातो का कभी अहसास नहीं हुआ, लेकिन एक दिन जब मै ने पड़ा की जिंदगी कितनी कीमती है चाहे ओ किसी भी प्राणी की क्यों न हो उस दिन से मेरे मन में उदारता आ गई.
संसार के समस्त प्राणी के लिए, फिर कभी कभी मुझे लगने लगा की मैं दुनिया के सबसे मुर्ख बुद्धिमान प्राणी में से हूँ जो खुद की सोचता है और परवाह तो किसी की नहीं करता।
आने वाला कल/Time to Come
कुछ सालो बाद दुनिया की जनसंख्या 1000 करोड़ के पार हो जाएगी। मान लो जीवन की खोज अगर कही कर ली भी जाये तो सब का वह पहुंच पाना मुमकिन नहीं है, इसलिए यही मंगल की तलाश करना चाहिए।
खुद के जीवन को बनाने के लिए इंसान इतना स्वार्थी हो गया है की वह कभी दूसरे इंसान के बारे में सोचता तक नहीं फिर बिचारे जानवरो का क्या।
आज के समय में रोज लाखों पेड़ काटे जा रहे लेकिन उन्हें लगाने की कोई बात नहीं करता, कई सालो से देखता आ रहा हु की सरकार एक ही जगह पे हर साल पेड़ लगाती लेकिन ओ पलते नहीं।
माना लो की आज से 100 साल बाद हर घर में हवाई जहाज हो लेकिन पेड़ न हो तो होगा, एक ऑक्सीजन का टैंक भी टांगना पड़ेगा, तो फिर ऐसी आधुनिकता और विचारधारा का क्या मतलब।
आने वाला कल बहोत दुखदाई होगा, जिसका कारण प्रकृति को अनदेखा करना। प्रकृति के प्रहार से बचने के लिए तुरंत उपयुक्त कदम उठाने की जरुरत है।
धर्म के प्रति घटती आस्था/ Declining Faith in Religion
जब तक इंसान सनातन धर्म को अपनाकर चल रहा था तब तक तो सब ठीक था, लेकिन अब धर्म संस्कृति मानो नाम मात्र की रह गई हो और इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
मै किसी धर्म का विरोधी नहीं क्यों सनातन धर्म मुझे ये नहीं सिखाता, लेकिन सब में मानवता सर्व पारी होनी चाहिए।
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हम मानव, सब प्राणी में श्रेष्ठ और हमारे कर्म, सच मुच सोचने वाली बात है। कर्म तो ऐसे होते जा रहे की कभी कभी सोचने मै सोच में पड जाता हु।
आने वाले समय के दुष्प्रभाव से बचने के लिए प्रकृति ध्यान रखना होगा, मानव अपने जीवन कर्तव्य का पालन सामर्थ पूर्वक करेंगे तब जा के थोड़ी उम्मीद की जा सकती है सम्पूर्ण विश्व के कल्याण की।