रायसेन का किला और इसका खोया इतिहास/Raisen Fort and Its Lost History
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मध्यप्रदेश अपने समृद्ध इतिहास के लिए जाना जाता है, प्रदेश में ऐसे अनेक ऐतिहासिक स्मारक है जिनका इतिहास में नाम दर्ज है। चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य, सम्राट अशोक, राजा भोज, चंदेल और चोल वंश के राजाओ से लेकर राजा मानसिंग, देवी अहिलिया, सिंधिया राजवंश, देवगढ़ के गोंड राजा के साथ साथ जबलपुर के मदन शाह मालवी का प्रमुख रूप से राज रहा है। इसके अलावा प्रदेश पर इस्लामिक आक्रामकता का तत्कालीन इतिहास में वर्णन मिलता है।
रायसेन किला/ Raisen Fort
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अनेक राज अपने अंदर दफ़न कर रखने वाले रायसेन किले को भूतिया किला भी कहा जाता है। इस स्थान पर जाना रात के समय प्रतिबंधित रहता है। इस किले का निर्माण एक पहाड़ी पर किया गया है, इस विशाल किले के क्षेत्र में एक जलाशय भी है।
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यह किला इतिहास, कला, वास्तुकला, संस्कृति और विरासत प्रेमियों के लिए एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र है। यह किला भोपाल के नाम से भी जाना जाता है। इस ऎतिहासिक किले की भोपाल से दूर लगभग 45 किलोमीटर है।
किला परिसर/ Fort Premises
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किले में एक जलाशय, किलेबंदी, नौ प्रवेश द्वार, मंदिर, इमारते और महल हैं। यह किला दो धर्मों के बीच सम्बन्ध को दर्शाता है क्योंकि हम किले के भीतर एक हिंदू मंदिर और एक मस्जिद निर्मित देख सकते हैं। इस किले की सीमाओं के भीतर, बादल महल, रोहिणी महल, इतरादान महल और हवा महल नाम के चार अलग अलग महल हैं। किला परिसर में भगवान शिव का एक प्रचीन मंदिर है, जो की शिवरात्रि के अवसर पर भक्तों के दर्शन के लिए खोला जाता है।
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ऐसा माना जाता है की यदि कपडे का एक टुकड़ा यहाँ मंदिर के द्वार पर बांध दिया जाय तो मनोकाना पूर्ण हो जाती है। किले की शोभा बढ़ाने के लिए बीच में एक बड़ा प्रांगण है। रायसेन किला हिंदू काल से अपनी स्थापना के समय से प्रशासन का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। जिस पे अनेक शासको ने शासन किया। अब, यह एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) के अधीन आता है।
रायसेन किले का इतिहास/ History of Raisen Fort
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1143 ईसवी में राजा रायसिंग द्वारा रायसेन नगर की स्थापना की गई और उसी दौरान वर्तमान किले का निर्माण किया गया। यह किला प्राचीन वास्तुकला और गुणवक्ता निर्माण का एक अद्भुत प्रमाण है, जो कई शताब्दियां बीत जाने के बाद भी शान से उसी तरह अडिग खड़ा है। इस किले का लिखित इतिहास लगभग 800 साल पुराना है। पंद्रहवीं शताब्दी में, इस किले पर मांडू के सुल्तानों का शासन हुआ करता था, जिसके बाद यह राजपूतों के पास चला गया।
किला जीतने के लिए धोखे का सहारा/Resort to Deception to Win The Fort
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साल 1543 ईस्वी में रायसेन किले को जितने के लिए शेरशाह ने धोखे का सहारा लिया था। उस समय इस किले पर राजा पूरनमल का शासन हुआ करता था। उन्हें जैसे ही ये पता चला कि उनके साथ धोखा हुआ है तो राजा पूरनमल ने दुश्मनों से अपनी पत्नी रानी रत्नावली को बचाने के लिए उनका सिर खुद ही काट दिया था। इसके बाद शेरशाह ने राजा पूरनमल को बंदी बना लिया था, और किले पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया था।
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अकबर के शासन के दौरान रायसेन एक मुख्यालय हुआ करता था। फिर भोपाल राज्य के तीसरे नवाब फ़ैज़ मोहम्मद खान ने 1760 में रायसेन पर शासन किया, बाद में उन्हें सम्राट आलमगीर द्वितीय द्वारा रायसेन के फौजदार के रूप में मान्यता दी गई। मुगल शासन काल के दौरान, खाखरा नामक क्षेत्र का मुख्यालय था जो अब गैरतगंज तहसील में स्थित है।
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किला घूमने का सबसे अच्छा समय/ Best Time To Visit Fort
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अगस्त से लेकर मार्च तक यहाँ घूमने के लिए सबसे अच्छा समय माना जाता है। प्रकृति के बीच निर्मित किला बहुत ही अद्भुत है, यहाँ परिवार और दोस्तों के साथ इस स्थान अच्छा समय बिताया जा सकता है। भोपाल शहर पास होने के कारण यह स्थानीय लोगो के लिए वीकेंड प्लान में होता है। किले में प्रवेश सुबह 10:00 से प्रारम्भ हो जाता है और यह शाम 5:00 तक खुला रहता है। इस किले को सम्पूर्ण दर्शन के लिए आवशयक रूप से 2-3 घंटे लगते है।