देश की जनजातियाँ – छिंदवाड़ा जिले की गोंड जनजाति/ Tribes Of The Country – Gond Tribes Of Chhindwara District

भारत देश में सबसे बड़े आदिवासी समुदायों में से एक है, गोंड जनजाति। संभवतः 1.3 करोड़ से अधिक आबादी वाले विश्व में, गोंड जनजाति भारत के डेक्कन प्रायद्वीप में बसती है। सरकारी आकड़ो अनुसार गोंड जनजाति के लोग मुख्य रूप से, वर्तमान में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, उड़ीसा और झारखंड में फैले हुए हैं। अधिकतर गोंड पहाड़ी क्षेत्र से आए हैं, और वे खुद को कोइतुर या कोइ भी कहते हैं।

गोंड (जनजाति) – Gondwanagyan750

इतिहास कहता है, गोंड मूल भारतीय जनजातियों का सबसे महत्वपूर्ण समुदाय था। उनके राजवंशों की स्थापना हुई और उन्होंने 15 वीं शताब्दी से 17 वीं शताब्दी की शुरुआत तक शासन किया, बाद में मराठा साम्राज्य ने सत्ता हासिल की। गोंडों ने चार राज्यों – गढ़ा-मंडला, देवगढ़, चंदा और खेरला की देखभाल की।

Korku people - Wikipedia

हालांकि किसी भी अन्य आदिवासी समूह की तरह, गोंड सबसे बड़ा होने के बावजूद आर्थिक समस्याओं और कठिनाई का सामना करता है। जिसका मुख्य कारण एकता न होना और सत्ता की लालशा था, जैसा की देवगढ़ के इतिहास पड़ने पर पता चालता है।

व्यवसाय और जीविका/ Business And Livelihood

परंपरागत रूप से, गोंड जनजातियाँ खेती और पशुपालन कर कर अपनी जीविका का  है। खेती में अनेक प्रकार के फसल उगते है जैसे गेहूं, विभिन्न प्रकार की दाल, चावल, तिल, कपास और बाजरा जैसी फसलों को उगाने में शामिल हैं।

कई स्थानों पर गोंड जनजाति के लोग अब भी शिकार करते हैं, अपनी आजीविका के लिए जंगल से फल इकट्ठा करते हैं। आज के समय में अनेक गोड़ जनजाति के लोग अपने पारम्परिक कार्य को छोड़कर कई क्षेत्र जैसे प्रोफेसरों, डॉक्टरों, राजनेताओं और व्यापारियों के रूप में भी अपने कैरियर बना रहे है।

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गोंड जनजाति के लोगो के गॉव/ Village Of The People Of Gond Tribe

ज्यादातर ये लोग दुर्गम स्थानों पर रहते है। जो की शहरी वातावरण से दूर होते है। इनकी बस्ती प्राकृतिक स्थान पर बसी होती है, जहा पानी का मुख्य स्रोत नदी होता है। नदी पर ये लोग अनेक प्रकार से निर्भर रहते है जैसी की, नदी के पानी का उपयोग सिचाई, पीने, पशुओ के लिए साथ ही ये लोग नदी में मछली भी पकड़ते है। 

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इस जन जाती के लोग समूह में रहा कर अपना जीवन व्यापन करते है। गॉंव में मुख्य रूप से जो घर बने होते है वो मिटटी के बने होते है।

गोंड जनजाति के घर व रहन सहन/ Gond Tribe Home And Living

गोंड जनजाति के लोगो के घर अन्य आदिवासी घरों की तुलना में काफी बड़े हैं। उनके घरो में एक बड़ा आंगन होता है, जो कमरों से घिरा हुआ है, जिसे कुरई भी कहा जाता है। अधिकतर इन लोगो के गॉव समहू में रहते है घर बहुत ही पास बने होते है।

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इन लोगो के घर में रसोई के लिए अलग कमरा होता है। उनके पास अपने भगवान की पूजा के लिए एक कमरा या जगह भी रहती है। घर आमतौर पर इनके घर पूर्व की ओर मुख वाला होता है और कमरे में प्रवेश करने के बाद पहला कमरा मेहमानों के लिए होता है।

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Gond Tribal Houses in Kanha | Tribal Houses Kanha

आम तौर पर गोंड घरों की दीवारें रंगीन चित्रों से सजी होती हैं। ढिग के रूप में कहा जाने वाला दीवार वाला हिस्सा दीवार के निचले हिस्से में इंडिगो, ब्लैक, गेरू जैसे रंगों से सजाया जाता है जिसे ढींगना कहा जाता है।

Sohrai Painting Tribal Art Bhelwara Village Jharkhand 1

पेंटिंग महिला द्वारा की जाती हैं और इस तरह की पेंटिंग ने पूरी दुनिया में काफी पहचान बनाई है। वास्तव में, यह व्यापक रूप से आधुनिक सजावट का हिस्सा बन गया है।

गोंड जनजाति बोली व भाषा/ Gond Tribe Dialect And Language

इस जनजाति के लोगो की प्राथमिक भाषा गोंडी है। चूंकि गोंडों को द्रविड़ परिवार का हिस्सा कहा जाता है, इस जनजाति समुदाय के अधिकांश सदस्य तमिल और कन्नड़ बोलते हैं। गोंड जनजाति के कुछ लोग तेलुगु, मराठी और हिंदी भी बोलते हैं।

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छिंदवाड़ा जिले में रहने वाले गोंड जनजाति के लोग मुख्य रूप से गोंडी भाषा का ही उपयोग करते है। परन्तु अब बहोत से क्षेत्र में हिंदी बोली का उपयोग होने लगा है। अब बहुत से लोग अपनी पारम्परिक बोली छोड़ हिंदी भाषा का दमन पकड़ने लगे है।

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गोंड जनजाति की मान्यता और पूजा/ Recognition And Worship Of The Gond Tribe

अधिकांश गोंड जनजाति हिंदू अंश हैं। उनकी धर्म भगवान की मूर्तियाँ आम तौर पर भाले के आकार की होती हैं, जिन्हें लोहे से निर्मित और सिंदूर पाउडर से लेपित किया जाता है। गोंडों में से कुछ एनिमिस्ट हैं जिनका अर्थ है कि आकाश, पेड़, पहाड़ों जैसे प्रकृति तत्वों में जीवन और आत्मा है और उनका अलौकिक बल ब्रह्मांड में जीवित है।

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पहले गोंड काली, बड़ा देव जैसे देवी-देवताओं की पूजा के लिए मनुष्यों की बलि दिया करते थे, हालांकि अंग्रेजों ने 19 वीं शताब्दी में इस अधिनियम को समाप्त कर दिया। अनुष्ठानों के लिए गोंड अब भी प्राणों की आहुति देकर देवी की पूजा करते हैं लेकिन अब जानवरों की बलि देते है।

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पारंपरिक त्योहार/ Traditional Festival

गोंड जनजाति के लोग हिन्दू धर्म को मानते है। इनके त्यौहार और उत्सव हिन्दू मान्यताओं के अनुसार ही मनाये जाते है। दिवाली, होली मुख्य रूप से बहोत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। साथ ही नवरात्रि में देवी माँ के विशेष पूजन का आयोजन भी किया जाता है।

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लोक गीत, नृत्य, मुर्गा लड़ाई गोंड उत्सव समारोह के मुख्य आकर्षण हैं। उनकी अनूठी रीति-रिवाजों और परंपराओं और आबादी की अच्छी संख्या के साथ, गोंड भारत की सबसे प्रमुख जनजाति है। वे अब हर कोने में बस गए हैं।

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छिंदवाड़ा जिले में इस समूह के लोग मुख्य रूप से जुन्नारदेव,तामिया और अमरवाड़ा क्षेत्र में रहते है इसके अलावा कुछ सौसर और पांढुर्ना क्षेत्र में रहते है।  इस जनजाति के लोगो को उभारकर आगे लाने में कमलनाथ जी का बहोत योगदान रहा है।

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