भीमबेटका भारत के मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में अब्दुल्लागंज से लगभग 9 किमी की दूरी पर स्थित एक पुरापाषाण कालीन आवासीय स्थल है। यह आदिमानव द्वारा बनाए गए शैल चित्रों और शैल आश्रयों के लिए बहुत प्रसिद्ध है। भीमबेटका के क्षेत्र को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भोपाल संभाग द्वारा अगस्त 1990 में राष्ट्रीय महत्व का स्थल घोषित कर दिया गया था।
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इसके पश्चयात जुलाई 2003 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया। यहां पाए जाने वाले शैल चित्र भारत में मानव जीवन के सबसे पुराने चिन्हों में से हैं। ऐसा माना जाता है कि यह स्थान महाभारत काल के चरित्र भीम से संबंधित है, इसलिए इसका नाम भीमबेटका पड़ा।
कितनी पुरानी गुफाएँ/ Kitni Purani Gufaye
![Amazing Caves In Bhimbetka - Tourism: अति विचित्र हैं ये गुफाएं, यहां आदिमानव ने बनाए थे शैलचित्र | Patrika News](https://new-img.patrika.com/upload/images/2016/03/14/bheembetka1-1457939417_835x547.jpg)
ये शैल चित्र पुरापाषाण काल के हैं यह काल लगभग 25-20 मिलियन वर्ष पूर्व से आधुनिक काल से 12000 वर्ष पूर्व से लेकर 10000 वर्ष पुराने माने जाते है। अन्य प्राचीन अवशेषों में प्राचीन किले की दीवारें, छोटे स्तूप, पाषाण युग की इमारतें, गुप्त शिलालेख, शंख शिलालेख और परमार काल के मंदिर के कुछ अवशेष भी यहाँ पाए गए हैं। ये गुफाएं मध्य भारत के पठार के दक्षिणी किनारे पर पहाड़ियों के निचले सिरे पर स्थित हैं। सतपुड़ा पहाड़ियाँ भीमबेटका के दक्षिण में शुरू होती हैं। इन गुफाओं की खोज वर्ष 1957-1958 में डॉ विष्णु श्रीधर वाकणकर के नेतृत्व में हुई थी।
शैलाश्रय और शैल चित्र/ Sailashray Aur Sail Chitra
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यहां 750 से अधिक शैलाश्रय हैं जिनमें 500 से अधिक शैलाश्रयों को चित्रों से सजाया गया है, भीमबेटका यह स्थान पाषाण काल से लेकर मध्यकाल तक मानव गतिविधियों का केंद्र रहा होगा। अब यहां की बहुमूल्य धरोहर पुरातत्व विभाग के संरक्षण में आती है। भीमबेटका क्षेत्र में प्रवेश करने पर यहां की चट्टानों पर लिखी कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती हैं। यहां बनाए गए शैल चित्रों के मुख्य विषय समूह नृत्य, रेखांकित मानव कार्य, शिकार, पशु और पक्षी, युद्ध और प्राचीन आदिम मानव जीवन की दैनिक गतिविधियाँ हैं। .
चित्रकारी में उपयोग किये गए रंग/ Chitrakari Me Upyog Kiye Gaye Rang
![भारत में यूनेस्को द्वारा संरक्षित विश्व धरोहर स्थल | 13 का पृष्ठ 12 | Studyfry](https://www.studyfry.com/wp-content/uploads/%E0%A4%AD%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%9F%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%B6%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AF.png)
चित्रों को रंगने के लिए मुख्य रूप से खनिज रंगों का उपयोग किया गया है, जिनमें मुख्य हैं गेरू, लाल, सफेद और कभी-कभी हरे और पीले रंग का भी उपयोग किया गया है। इन शैलाश्रयों की भीतरी सतहों पर उत्कीर्ण कप के आकार के निशान एक लाख वर्ष से अधिक पुराने बताए जाते हैं। इन शैल चित्रों में दैनिक जीवन से संबंधित घटनाओं से संबंधित विषय पर चित्र मिलते हैं।
हजारो साल पुरानी पेंटिंग्स/ Hajaro Saal Purani Pentings
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ये पेंटिंग हजारों साल पहले के जीवन को दर्शाती हैं। यहां बनाए गए चित्रों में मुख्य रूप से नृत्य, संगीत, शिकार, घोड़ों और हाथियों की सवारी करना, आभूषणों को सजाना और शहद इकट्ठा करना शामिल है। इन सबके अलावा यहां बाघ, शेर, हाथी, कुत्ते, घड़ियाल और जंगली सूअर जैसे जानवरों के चित्रण भी मिलते हैं। यहां की गुफाओं की प्राचीनता उनके महत्व को दर्शाती है, जो प्राचीन काल में मानव निर्मित रॉक पेंटिंग है।
मानव सभ्यता की शुरुआत/Manav Sabhyta Ki Suruwat
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यहाँ पायी जाने वाली गुफा, शैलचित्र विश्व में अब तक के ज्ञात सब से पुराने स्थानों में से एक है। गुफाओ की दीवारों पर बने चित्र हजारो साल पुराने है। ज़्यदातर चित्रकारी जगली पशुओ जैसे हिरन, हाथी, शेर, जगली सुवर आदि बने हुए है। अधिक तर चित्र इस स्थान पर रहने वालो आदिमानव की जीवन शैली को दर्शाते है। इन गुफाओ में अनेक शैलाश्रय बने हुए जहाँ पर वे आराम करते रहे होंगे। यह स्थान सतपुड़ा और नर्मदा वैली से जुडी हुई है, हो सकता है की जीवन की सुरवात यही से हुई होगी।
घूमने के लिए उपयुक्त स्थान/ Ghune Ke Liye Upyukat Sthan
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भोपाल के पास होने के कारन यह स्थान घूमने के लिए उपयुक्त है। यह स्थान पूरी तरह प्राकृतिक सुंदरता से घिरा हुआ है। यहाँ की गुफाये देखने पर हमें अतीत में ले जाती है। हजारो साल पुरानी चित्राकल देखने योग्य है। परिवार दोस्तों के संग समय बिताने के लिए बहोत अच्छा है।