छिंदवाड़ा जिले के मुख्य धार्मिक स्थल /Main religious places of Chhindwara district

छिन्दवाड़ा जिले में अनेक धार्मिक स्थल है जिनका अपना एक अलग महत्व है, जिले अनेक प्राचीन मंदिर एवं देव स्थान है जिनका अस्तित्व सैकड़ो सालो से है और लोगो के आस्था का केंद्र बने हुए है जिनमे से प्रमुख इस प्रकार है.

1. जाम सवाली हनुमान मंदिर, सौसर/ Jam Sawali Hanuman Temple, Sausar

जाम सवाली हनुमान मंदिर छिंदवाड़ा के तहसील सौसर में स्थित है यह प्राचीन मंदिर अच्छी तरह से चमत्कारों के लिए जाना जाता है। इसलिए इस मंदिर को चमत्कारी हनुमान मंदिर के नाम से भी जाना जाता है यह सौसर कस्बे से 6 किमी दूर पर महराष्ट्र राज्य की सीमा के समीप है. यहाँ भगवान हनुमान की विशाल प्रतिमा शयन मुद्रा में है जो की असाधारण रूप से सामान्य नहीं है।

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 यह मंदिर सौसर- पांढुर्ना मुख्य मार्ग पर है यहाँ जाना बहोत ही सुगम है, प्रति मंगलवार और शनिवार को भक्तो की विशेष भीड़ यहाँ रहती है. मंदिर हर मौसम में खुला रहता है आप जब चाहे तब यहाँ आ कर भगवान का आशीर्वाद ले सकते है.

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इस मंदिर में भगवान हनुमान को बालब्रम्हचारी  रूप में देखा जाता है इसलिए यहाँ पर मंदिर की पवित्रता को बनाये रखने के लिए महिलाओ के लिए अलग से प्रवेश द्वार बनाये गया है. यहाँ चमत्कारी मंदिर महाराष्ट्र राज्य के करीब होने की वजह से ज्यादा भक्त वही से आते है.

मंदिर के इतिहास के बारे में कोई विशेष प्रमाण नहीं है और जो प्रमाण है ओ सिर्फ १०० साल पुराना।  यह प्रतिमा यहाँ कैसे आई कब आई कोई नहीं जनता। कहा जाता है की पीपल के पेड़ के निचे पहले प्रतिमा खड़ी थी पर मूर्ति के नीचे छिपे हुए धन की अपवाह को जाना कर इसे हटाने की कोशिश की गई और तब से यह प्रतिमा शयन अवस्था में आ गई तब से यथावत विराजमान है.

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मान्यता है की जब हनुमान जी संजीवनी लेने हिमालय गए थे तब उन्होंने इसी वायुमार्ग का उपयोग किया था और यहाँ कुछ देर विश्राम किया था. यह मंदिर अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है यहाँ अवश्य जाये और भगवान की कृपा का पात्र बने.

2. हिंगलाज माता मंदिर, परासिया/Hinglaj Mata Temple, Parasia

विश्व में दो ही हिंगलाज माता मंदिर है एक छिंदवाड़ा जिले के परासिया तहसील के पास और दूसरा पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त में जो आज भी वहाँ के हिन्दुओ के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है. हिंगलाज माता का प्राचीन मंदिर छिंदवाड़ा जिला मुख्यालय से करीब 35 किमी दूर उमरेठ थाना क्षेत्र के अम्बाड़ा छेत्र के अंतर्गत आता है।

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114 वर्ष पूर्व 1907 में कोल माइनस के अंग्रेज मालिक ने अपने कर्मचारियों को मूर्ति हटाने का काम दिया था, लेकिन मजदूरों की बहोत कोशिशों के बाद भी मूर्ति अपनी जगह से हिली तक नहीं थी।

उस अंग्रेज को सपने में हिंगलाज माता आई और मूर्ति न हटाने की चेतावनी दी थी। उसने अगली सुबह यह बात मजदूरों को बतायी और फिर से मूर्ति हटाने का आदेश दे कर पत्नी के साथ खदान में अंदर घूमने चला गया।

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एक ओर मजदूर पुनः मूर्ति हटाने का प्रयास करने लगे और दूसरी ओर जैसे ही अंग्रेज खदान के भीतर गया, खदान में पत्थर धंसका और अंग्रेज खदान में हमेशा के लिए जिंदा दफन हो गया। ऐसा कहा जाता है कि उस रात वहां भयंकर विस्फोट हुआ और आग की लपटें निकलीं। हिं

गलाज माता की मूर्ती अपने आप वहाँ से उठकर जंगलों में आकर विराजमान हो गई। इसके कुछ समय बाद लोगों को जंगलों में इमली के पेड़ के नीचे हिंगलाज माता की मूर्ती मिली और फिर यहां उनका मंदिर बनवाया  गया।

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हिंगलाज माता मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है। माता रानी के प्रति लोगों की आस्था इतनी अपार है कि नवरात्र में हर दिन दस हजार से अधिक भक्त दर्शन करने और आशीर्वाद लेने यहाँ पहुंचते हैं। मान्यता है कि मां के दरबार में हर मनोकामना पूरी होती है।

हिंगलाज माता का यह मंदिर हिंगलाज देवी शक्तिपीठ के नाम से भी ख्यात है। पुराणों के अनुसार भगवान श्री विष्णु के चक्र से कटकर यहां पर देवी सती का सिर गिरा था। इसलिए यह स्थान चमत्कारी और दिव्य माना जाता है। हिंगलाज देवी के विषय में ब्रह्मवैवर्त पुराण में जिक्र है कि जो एक बार माता हिंगलाज के दर्शन कर लेता है उसे पूर्वजन्म के कर्मों का दंड नहीं भुगतना पड़ता है।

3. कपूर्दा माता मंदिर, चौरई/Kapurda Mata Temple, Chaurai

षष्ठी माता (कपूर्दा माता) मंदिर छिंदवाड़ा जिले से लगभग 45 किमी दूर तहसील चौरई के कपूर्दा में स्थित है। इस मंदिर को कपूर्दा माता मंदिर के नाम से भी जाना जाता है.

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इस मंदिर का अपना धार्मिक और संस्कृति महत्व है यहाँ लगभग हर दिन सैकड़ो की संख्या में भक्त आते है, लेकिन मंगलवार के दिन यहाँ पर पूजा के अच्छा दिन माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि अगर कोई सच्ची श्रद्धा और आस्था के साथ माता काअभिषेक करता है, तो उसके सभी कस्ट दूर हो जाते है।

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कुछ भक्त यहाँ पर अपने बच्चो का मुंडन भी करवाते है,  कहा जाता है की जिन लोगो को शादी के बाद कई सालो तक संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ है अगर वे यहाँ सच्चे सेवा भाव से आये तो जरूर ही माता रानी की कृपा से उन्हें संतान सुख  प्राप्ति होती है.

नव रात्रि के समय यहाँ पर 9 दिनो के लिए मेला लगता है इस समय यहाँ पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है.

4. राघादेवी मंदिर, रामाकोना (सौसर)/Raghadevi Temple, Ramakona (Sausar)

छिंदवाड़ा के तहसील सौसर के बिछुआ ब्लॉक में राघादेवी मंदिर नामक स्थान है जहाँ पर भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है इस प्राचीन मंदिर का बहोत धार्मिक महत्व है यहाँ पर प्रत्येक महाशिवरात्रि को 5 दिवशीय विशाल मेला लगता है. शिवरात्रि में लगने वाले मेले में दूर-दूर से भक्त भगवान शिव के दर्शन एवं आशीर्वाद लेने आते है.

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राघादेवी शिव मंदिर पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है यहाँ अनेक गुफाये है जो अपने अंदर कई रहश्यो को दबाये हुए है. जैसे ही इन गुफाओ में प्रवेश करते  है एक अलग अहसास की अनुभूति होती है. राघादेवी देव स्थल छिंदवाड़ा-नागपुर राजमार्ग में पड़ने वाले ग्राम रामाकोना से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

यह स्थान धार्मिक और प्राकृतिक रूप से बहोत ही महत्व पूर्ण स्थान रखता है. यदि कोई धार्मिक स्थल के साथ प्राकृतिक स्थल भी घूमना चाहता है तो यह स्थान उपयुक्त है.

राघादेवी के पास एक छोटी नदी पहाड़ी और पत्थरीली चट्टानों से होकर बहती है इसका दृश्य भी बहोत सूंदर होता है

5. अन्होंनी, झिरपा तामिया/Anhoni, Jhirpa Tamiya

छिंदवाड़ा जिले में तामिया तहसील से लगभग 55 किमी दूरी पर ग्राम झिरपा के निकट अन्होंनी नामक स्थान है जहा प्राकृतिक कारणों से एक गर्म पानी के कुंड का निर्माण हुआ है और यह वर्ष भर गर्म ही रहता है. यहाँ गर्म पानी होने का कारन स्थानीय लोग दैविक बताते है। वही वैज्ञानिक का तर्क अलग है उनका मानना है की मंदिर स्थल के निचे प्रचुरमात्रा में सल्फर है जिस कारन यहाँ का पानी हमेशा गर्म रहता है.

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और इसी कारन से यहाँ के पानी में उबाल आता हुआ दिखाई देता है इस कुंड की ऐसी मान्यता है कि गर्म पानी में स्नान करने से फोड़े, फुंसी, दाद-खाज, खुजली एवं अन्य त्वचा सम्बन्धी रोगो से छुटकारा मिलता है। इस गर्म पानी के कुंड की प्रसिध्दि दूर दूर तक है. समय के साथ स्थानीय लोगों की मदद से यहाँ पर अनहोनी माता एवं भगवान शंकर के मंदिर का निर्माण किया गया है.

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मकर संक्रांति पर 14 जनवरी को यहां पर 7 दिन के लिए विशाल मेला आयोजित किया जाता है। इस मेले में शामिल होने के लिए स्थानीय लोगो के अलावा दूर दूर से भक्त यहाँ आते है।

मकर संक्रांति के दिन प्रात: काल से ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु अनहोनी गर्म कुण्ड में स्नान करना का महत्व है। ऐसा कहा जाता है की संक्रांति के दिन भगवान शंकर, माता पार्वती, और माँ अन्होंनी के दर्शन कर उन्हें तिल के लडुओं व खिचड़ी का भोग लगाने से भक्तो की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।

6. अर्धनारीश्वर ज्योतिर्लिंग मोहगांव, सौसर/Ardhanarishwar Jyotirlinga Mohgaon, Sausar

छिन्दवाड़ा जिले के तहसील सौसर लगभग 6 किलोमीटर की दुरी पर मोहगांव नगर में सर्पिणी नदी के किनारे स्थित श्री अर्धनारीश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित है,  यह तीर्थ स्थल पुरातन काल से सर्पिणी नदी जो सतपुड़ा पर्वत माला की प्रथम सीढ़ी पर स्थित है, इस स्थान का प्राचीन नाम महदगावं था।

पौराणिक आधार पर यह क्षेत्र दण्डकारण्य कहलाता है, जो कि दैत्य गुरू शुक्राचार्य की कर्मभूमि मानी गई है। जैसे की सब जानते है दैत्य गुरू शुक्राचार्य भगवान भोलेनाथ के अनन्य भक्त थे, उन्होंने यहाँ सर्पिणी नदी तट पर तपस्या की थी, वही स्थान अब स्थान मंदिर परिसर है।

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शुक्राचार्य की कठोर तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुये, तब शुक्राचार्य ने भगवान भोलेनाथ से कहा मैं केवल माता पार्वती को आपके साथ देखना चाहता हूॅं, तब भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर रूप उन्हें दिखाया। तब से यहाॅं अर्धनारीश्वर भगवान ज्योतिर्लिंग के रूप आज भी विराजमान है। 

यह देव स्थल चार धाम (बद्री, केदार, द्वाराका, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर) बारह ज्योतिर्लिंग तथा त्रिपुर सुंदरी के केन्द्र बिन्दु पर स्थित है। 

पुरातन काल से इस ज्योतिर्लिंग मंदिर से निर्माण संरचना एवं वास्तुकला महामृत्युंजय यंत्र आधारित होने से यह शक्तिपीठ कहलाता है।

कहा जाता है की इसके दर्शन मात्र से बारह ज्योतिर्लिंग एवं चार धाम की यात्रा का पूण्य फल प्राप्त होता है। सर्पिणी नदी नाम होने के कारण इस स्थल पर कालसर्प योग दोष शांति विधान में शीघ्र फल प्राप्ति होती है।

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ज्योतिर्लिंग की अद्भुत विशेषता यह है कि यह गहरे काले रंग और गौर वर्ण दोनों तरह के पत्थर से निर्मित है, जो “शिव” और मां “पार्वती” के एक साथ विराजमान होने दर्शाता है. यह अर्धनारीश्वर भगवान का अभीष्ट रूप है. विश्व में एकमात्र यही शिव मंदिर है, जहां सूर्य की प्रथम किरण सीधे ज्योतिर्लिंग पर पड़ती है.

यहाँ सर्वप्रथम मंदिर का निर्माण परमार वंश में हुआ था जिसका का तेरहवी शताब्दी एवं पंद्रहवी शताब्दी के बीच जीर्णोधार देवगढ़ के गोंड राजा एवं नागपुर के भोसले राजा द्वारा किया था।

7. हनुमान मंदिर सिमरिया/सिद्धेश्वर हनुमान मंदिर सिमरिया/ Hanuman Temple Simaria / Siddheshwar Hanuman Temple Simaria

छिंदवाड़ा जिले में छिंदवाड़ा-नागपुर मुख्य मार्ग पर सिमरिया गाँव के निकट भगवान हनुमान की विशाल प्रतिमा विराजमान है जिसकी ऊचाई 101 फिट है. इस गगनचुम्बी मूर्ति को सिद्धेश्वर हनुमान मंदिर के नाम से भी जाना जाता है.

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यह मंदिर परिसर 5 एकड़ में फैला है जिसमे सूंदर पार्क बना हुआ है, हनुमान जी की प्रतिमा इतनी विशाल की इसे कई किलोमीटर दूर से ही देखा जा सकता है, यहाँ से जो भी गुजरता है वह थोड़ी देर रुक कर भगवान से आशीर्वाद ले के ही आगे बढ़ता है 

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यह प्रतिमा पूर्व केंद्रीय मंत्री और छिंदवाड़ा जिले के सांसद कमलनाथ के द्वारा स्थापित कराई गई है। यह प्रतिमा 2015 में स्थापित हुई है. साथ ही पांच एकड़ भूमि पर एक सुरम्य और धार्मिक पर्यटन स्थल विकसित किया गया है। भगवान हनुमान के अलावा यहाँ श्री शिव पार्वती, श्री राम दरबार, श्री लक्ष्मी नारायण, भगवान गणेश, माता रानी दुर्गा की प्रतिमायें भी मंदिर में स्थापित की गई हैं।

छिन्दवाड़ा जिले के अंतर्गत आने वाले अन्य प्रमुख मंदिर:

बंजारी माता मंदिर, सिल्लेवानी
अनपूर्णा माता मंदिर, रिधोरा
शिव मंदिर, जामलापनी
पातालेश्वर मंदिर, छिंदवाड़ा
कोसमी हनुमान मंदिर, परासिया
खेड़ापति मंदिर, परासिया
भरता देव मंदिर, चंदनगांव
केशरीनंदन हनुमान मंदिर, छिन्दवाड़ा
श्री राम मंदिर, छिन्दवाड़ा
अनगढ़ हनुमान मंदिर, छिन्दवाड़ा

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