मध्यप्रदेश के बैतूल जिले तहसील मुलताई से माँ ताप्ती का उद्गम हुआ है, ताप्ती को सूर्यपुत्री के नाम से भी जाना जाता है। देश में बहने वाली प्रमुख नदियों में से एक है जिसका धार्मिक महत्व है मुलताई, सतपुड़ा पर्वत श्रेणी के अंतर्गत आने वाले पठारी क्षेत्र में मुलताई, उदगम स्थल स्थित है।
ताप्ती नदी की महिमा का वर्णन स्कंद पुराण में मिलता है। माँ ताप्ती को सूर्यपुत्री और शनि देव की बहन होने कारण जो लोग शनिदेव के प्रकोप से प्रभावित होते है उन्हें स्नान मात्र से शनि दोष से मुक्ति मिलती है।
ताप्ती नदी को मध्य भारत की गंगा भी कहा जाता है, माँ ताप्ती के जन्मोत्सव का आयोजन प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल सप्तमी को मनाया जाता है।
मां ताप्ती नदी अपने उदगम स्थल से लगभग 740 किमोमीटर की दुरी तय कर के गुजरात के डूमस (सूरत) नामक स्थान पर समुद्र में जा मिलती है।
प्रति वर्ष उद्गम स्थल से कलश में ताप्ती जल लेकर पदयात्रा निकलती है जो इसके संगम स्थान तक जाते है, वह पहुंच कर कलस विषर्जन कर पूजा अर्चना की जाती है तथा माँ ताप्ती को चुनरी अर्पित कर पदयात्रा का समापन किया जाता है।
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इस पदयात्रा में सैकड़ो भक्त सम्मिलित होते है जो ताप्ती नदी के किनारे स्थित गांव और नगरों से होकर संगम स्थान तक पहुंचते है।
कार्तिक माह में प्रतिवर्ष ताप्ती उदगम स्थल मुलताई में मेले का आयोजन होता है जिसमे भाग लेने दुर-दूर से श्रद्धालु आते है, कार्तिक अमावश्या पर स्नान करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है।
मारोतपरान्त अस्थी विषर्जन, शांति पूजन और मुंडन के लिए यह स्थान जाना जाता है।
मां ताप्ती की उत्पत्ति/ Origin of Maa Tapti
ताप्ती नदी की महिमा का बखान महाभारत, स्कंद पुराण में कई स्थानों पर वर्णन मिलता है।
जब ब्रह्मदेव ने सृष्टि का निर्माण प्रारम्भ किया तब सम्पूर्ण जगत अंधकार मय था, इस अंधकार को दूर करने ब्रम्हादेव ने अपने मानस पुत्र सूर्य देव को उत्पन्न किया। जिस वजह से पृथ्वी का अंधकार दूर हुआ और जिससे धरा के तप में वृद्धि हुई।
सूर्य देव की पसीने की बून्द जब धरती पर गिरी तब माँ ताप्ती का अवतरण हुआ। इसी वजह से इसे सूर्य पुत्री के नाम से भी जाना जाता है, यह भी माँ नर्मदा की के समान ही अति प्राचीन नदी है।
मां ताप्ती का जन्मदिन/ Mother Tapti’s Birthday
देश में अनेक जीवन दायनी और पूजनीय नदिया है और उन सबका अपना एक महत्व है, लेकिन एक मात्र ऐसी नदी है जिसका जन्म दिन बहोत ही हषोल्लास से मनाया जाता है।
जन्म दिन के अवसर पर पूजन कर माँ ताप्ती को चुनरी उड़ाई जाती है और महा आरती का आयोजन किया जाता है।
माँ ताप्ती के जन्मोत्सव के अवसर पर दूर-दूर से श्रद्धालु यहाँ आते है और माँ ताप्ती को चुनरी भेट करते है।
हिन्दू मान्यता और वेद पुराणों के अनुसार ताप्ती को सूर्य पुत्री कहा जाता है और शनि देव की बहन माना जाता है।
मध्यप्रदेश को नदियों का मायका भी कहते है यहाँ से अनेक जीवन दायनी नदियों का उदगम स्थल है। नर्मदा और ताप्ती नदी को शास्त्रों में स्थान प्राप्त है, इनका प्रवाह भी प्रमुख नदियों के प्रवाह के विपरीत है।
मां ताप्ती के 21 कल्पों में नाम/ Name in 21 Kalpas of Maa Tapti
सत्या, सत्योद्भवा, तिग्मा, श्यामा, सूक्ष्मतरमणी, कपिला, ताम्रा, कपिलांबिका, तपनह्दा, नासत्या, नासिकोद्भवा, सनकामृतसयंदिनी, सावित्री, सहस्त्रकरा, सूक्ष्मा, सर्पा, सर्वविषपहा, तापिनी, तिम्मारया, तारा, तापी-विश्रुता।
उद्गम व संगम स्थल/ Point of Origin and Confluence
मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के तहसील मुलताई में माँ ताप्ती का उद्गम स्थल है, यहाँ एक प्राचीन मंदिर में एक ताप्ती माँ की सूंदर प्रतिमा विराजमान है।
ताप्ती उदगम से संगम स्थल डुमस (सूरत) खम्बात की खाड़ी, गुजराज तक पहुंचने के लिए अनेक गांव और शहरों से होकर गुजरती है जिसमे अनेक छोटी बड़ी लगभग 50 से ज्यादा नदियाँ मिलती है।
तीन राज्यों से होकर गुजरती है
मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र की सिमा पर सतपुड़ा की पहाड़ियों के बीच से होकर गुजरात राज्य से होते हुए संगम स्थल तक पहुंचती है। पूर्व से पछिम दिशा की ओर बहने वाली प्रमुख नदी में से एक है, उदगम स्थल से लगभग 740 किलोमीटर की दुरी तय कर के अरब सागर में जा मिलती है।
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प्रमुख सहायक नदियां/ Major Tributaries
ताप्ती संगम स्थल तक पहुंचने तक अपने अंदर अनेक सहायक नदियों को अपने अंदर समाहित कर लेती है जिनमे अनेक स्थानीय नदियाँ जैसे उतावली, मोहना, चौड़ी, सुखी नदी के साथ मुख्य सहायक नदी में आनेर, वाघर, बोरी, पंझरा, गिर्णा और पूर्णा है।
ताप्ती के सात कुण्ड और उनका महत्व/ The seven Pools Of Tapti And Their Importance
माँ ताप्ती के मूल उदगम स्थल मुलताई के बारे में सात कुण्डों का वर्णन मिलता है जिन्हे अलग अलग नामो से जाना जाता है और उनके बारे में अनेक कहानिया जनलोक में प्रचिलित है।
- सूर्यकुण्ड
ऐसा कहा जाता है की इस स्थान पर स्वयं भगवान सूर्य ने स्नान किया था।
- ताप्ती कुण्ड
सूर्य पुत्री ताप्ती ने पशु पक्षी, नर, किन्नर, देव, दानव और प्रकृति आदि की रक्षा करने हेतु माँ ताप्ती ने ताप्ती कुण्ड से निकल कर नदी का रूप लिया और जन-कल्याण करते हुए अरब सागर में समाहित हो जाती है।
- धर्म कुण्ड
यमराज या धर्मराज ने स्वंय आकर इस कुण्ड में स्नान किया था इसलिए यह धर्म कुण्ड कहलाता है।
- पाप कुण्ड
सच्चे मन और आस्था से माँ ताप्ती का ध्यान करते हुए यदि इस कुंड में स्नान किया जाता है तो भक्तो के सारे पापो से मुक्त हो जाते है।
- नारद कुण्ड
लोक कथाओ अनुसार कहा जाता है की देवऋषि नारद ने श्राप से उत्पन्न कोढ़ से मुक्ति पाने के लिए इस कुण्ड में स्नान किया था इसलिए इस कुण्ड को नारद कुण्ड के नाम से जाना जाता है।
- शनि कुण्ड
शास्त्रों के अनुसार शनिदेव माँ ताप्ती के भाई है जब भी शनिदेव अपनी बहन ताप्ती के घर आते तो पहले ऐसी कुंड में नहाते थे उसके बाद ही बहन ताप्ती के घर में प्रवेश करते थे इसलिए इस कुण्ड को शनि कुण्ड कहा जाता है। कहा जाता है की यदि कोई इस कुण्ड में स्नान करता है तो शनि दशा से मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
- नागा बाबा कुण्ड
नागा कुण्ड नागा सम्प्रदाय के बाबाओ का कुण्ड है कहा जाता है की यहाँ पर नागा साधुओ द्वारा कठोर तप कर के भगवान शिव को प्रसन्न किया गया था, इस कुण्ड के समीप एक सफ़ेद जनेऊ धारण किये हुए दिव्य शिवलिंग है।
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माँ ताप्ती नदी का महत्व/ Importance of Maa Tapti River
- सूर्य पुत्री ताप्ती को उसके भाई शनिदेव द्वारा यह आशीर्वाद दिया है कि जो भी भाई-बहन चतुर्थी के दिन ताप्ती में स्नान करेगा उसकी अकाल मृत्यु नहीं होगी और शनि देव का आशीर्वाद हमेशा बना रहेगा।
- यदि ताप्ती नदी में बिना किसी विधि विधान के बहते जल में यदि किसी भी व्यक्ति द्वारा अतृप्त आत्मा को याद करके उसे अपने दोनों हाथों में जल लेकर उसकी शांति एवं तृप्ति की कामना कर जल को नदी में छोड़ा जाता है तो मृत व्यक्ति की आत्मा को हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाती है।
- ताप्ती मुख्य जलस्रोत मुलताई के उत्तर दिशा में स्थित लगभग 800 मीटर ऊंची पहाड़ी है जिसे प्राचीनकाल में ऋषि गिरि पर्वत के नाम से जाना जाता था जो बाद में ‘नारद टेकड़ी’ हो गया।
- वैसे तो स्मरण मात्र से ही माँ ताप्ती अपने भक्त पर आशीर्वाद बनाये रखती है, लेकिन यदि किसी ने उसके अस्तित्व को नकारने की चेष्टा की तो वे फिर शनिदेव प्रकोप से बच नहीं पता क्यों ताप्ती शनिदेव की बहन हैं।
- शास्त्रों अनुसार यदि भूलवश या अनजाने से किसी भी मृत शरीर की हड्डी ताप्ती नदी के जल में प्रवाहित हो जाती है तो उस मृत आत्मा को मुक्ति मिल जाती है।
- अकाल मौत की शिकार बनी देह की अस्थियां यदि ताप्ती जल में प्रवाहित करने से अकाल मौत का शिकार बनी आत्मा को भी प्रेत योनि से मुक्ति मिल जाती है।
- इसके पावन जल में वर्ष के 12 माह किसी भी मृत व्यक्ति का तर्पण कार्य किया जा सकता है। इस तर्पण कार्य को ताप्ती जन्मस्थली मुलताई में नि:शुल्क संपन्न किया जाता है।
- नदी के जल में उद्गम स्थल मुलताई से लेकर संगम (सूरत, गुजरात) तक कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म-जाति-वर्ग का अपने किसी भी परिजन या परिचित व्यक्ति की मृत आत्मा का तर्पण कार्य संपन्न किया जा सकता है।
- भारत में पश्चिम दिशा में बहने वाली प्रमुख नदी में से एक है। ताप्ती, यह नाम ताप अर्थात ऊष्ण (गर्मी) से उत्पन्न हुआ है।वास्तव में ताप्ती ताप-पाप-श्राप और त्रास को हरने वाली आदिगंगा कहा जाता है।स्वयं भगवान सूर्य ने स्वयं के ताप को कम करने के लिए माँ ताप्ती को धरती पर अवतरित किया था।
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